भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थारी आंख्यां सांम्ही / नन्द भारद्वाज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कित्तौ बेबस
अर खाली हाथ व्हे जावूं
थारी उदास आंख्यां रै सांम्ही
आवतां ई म्हैं

आंख्यां -
जिकी सई सिंझ्या
गिरद चढियोड़ै आभै में ज्यूं
अणथाग सूनौपण लियां
पसरियोड़ी व्है कोसां लग
            भावहीण
निस्चै ई नीं भर सकूं
थारा बरत्योड़ा सबदां अर संकेतां सूं
आं सूकी तळायां मांय नुंवौ विस्वास
सुख-सांयत रौ नैहचौ
अर हीयै में हरख
हिबोळा खावतौ --

जांणै क्यूं
सुर तूट जावण पछै
अकारथ व्हे जावै
साज रा सगळा उतार-चढाव

कुण-सा संकेतां
अर सबदां-आखरां बूतै
समझावूं म्हारौ मकसद
जिकौ थारी
भुगत्योड़ी आखी ऊमर
अर अणभव रौ अरक पीयोड़ी
आंख्यां सांम्ही आवतां ई
व्हे जावै साव अबोलौ
अर पांगळौ -

अर इणी अरथ में
खोज है म्हारी कविता
वं नुंवां विस्वासू
      स्बद-आखरां री,
जिका
    थारी आंख्यां रै सांम्ही
            ऊभ सकै !

अगस्त, ’73