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थिएटर-ध्वनि / अछूतानन्दजी 'हरिहर'
Kavita Kosh से
जागो जी जागो, असली नाम डुबाने वाले। टेक।
वंश डुबाने वाले, राज गँवाने वाले,
बन के गुलाम 'दस्यु' , नाम धराने वाले॥
गफलत में सोने वाले, अटकी पर रोने वाले,
सहते धुत्कार अपना सर्वस्व मिटाने वाले॥
तुमको है निद्रा प्यारी, जग में हो रहे धिक्कारी,
खोके धन-धाम सारा दुक्खों के बढ़ाने वाले॥
तुम तो हो नेशन भारी, मुलकी हक के अधिकारी,
ले लो निज राज 'हरिहर' बातों के बनाने वाले॥