भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थूं कर / इरशाद अज़ीज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आंख्यां मींच
अंधारो कर लूं
आ कदैई नीं हुय सकै
उजास रो मतलब जाणूं हूं
जीवण री हूंस जिकां मांय हुवै
बै अंधारौ नीं ढोवै
साच नैं आंच
कदैई नीं आवण देवै
थूं कर
जीवण रा जतन अर
रिस्तां रो मोल पिछांण।