भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थोड़ा-सा प्रकाश / अग्निशेखर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी सोई हुई माँ के चेहरे पर
किसीछिद्र से पड़ रहा है
थोड़ा-सा प्रकाश
हिल रही हैं उसकी पलकें
कौन कर रहा है इस अंधेरे में
सुबह की बात