थोड़ा प्यार मुझे भी दे दो / रंजना वर्मा
जीवन की सूनी राहों पर कब तक चलूँ अकेली यूँ ही
साथ अगर देना चाहो तो थोड़ा प्यार मुझे भी दे दो।
यह उपहार मुझे भी दे दो॥
फूल फूल शूलों के पहरे
भ्रमर वृन्द फिर कैसे ठहरे?
पवन झकोरों के हिम कण से
पंखुड़ियों का मृदु तन सिहरे।
सप्त सुरों के प्रीत गीत से देह वल्लरी झंकृत कर दे
सूखी लता हरी हो जाये वह अभिसार मुझे भी दे दो।
यह उपहार मुझे भी दे दो॥
बादल के छौनों से हिलमिल
चंदा आँख मिचोली खेले।
वह क्या जाने सुप्त कमलिनी
असहनीय बिरहानल झेले।
रोम रोम में प्यास असीमित हँसे देह में रजनीगंधा
तृप्ति बिंदुओं में बरसे वह मेघ-मल्हार मुझे भी दे दो।
यह उपहार मुझे भी दे दो॥
चाँद चाँदनी विरह मिलन के
गीत सुनाये चतुर चकोरी।
नयन नीर बहते कोरों से
भी मुस्काए मुग्धा गोरी।
धीमी धीमी तपन भरी शीतल अनुभूति विकल कर जाये
मुस्कानों से सजा हुआ सुरभित संसार मुझे भी दे दो।
यह उपहार मुझे भी दे दो॥
सिहरन सिहरन प्रीति जगाती
धड़कन धड़कन याद तुम्हारी।
निःश्वांसों में चंदन महके
थर थर काँपेहै देह कुवाँरी।
जीवन पथ के धूलि कणों पर बूँद-बूँद गिरकर सरसा दे
मोहित कर ले एक दृष्टि से वह शृंगार मुझे भी दे दो।
यह उपहार मुझे भी दे दो॥
करवट करवट बनी लेखनी
सिलवट सिलवट बनी कहानी।
हर आहट एहसास अनोखा
बन जाती है प्रीति पुरानी।
तन तप कर अणु-अणु खिल जाये प्रेमानल के मधुर ताप से
साँस साँस दहका जाये ऐसा अंगार मुझे भी दे दो।
यह उपहार मुझे भी दे दो।
थोड़ा प्यार मुझे भी दे दो॥