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थोड़े से तो ठाठ करैं सै तेरा फकीरी बाणा / बलबीर राठी 'कमल'

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थोड़े से तो ठाठ करैं सै तेरा फकीरी बाणा
ऊठ कमेरे तेरा दुखड़ा चाहूं तनै सुनाणा

न्यूं तै सोच कै देख तेरा धन किन हाथां में जारया सै
कौण दुखी सै तेरी तरियां कौण ठाठ कर रया सै
भोळे माणस तेरी कमाई कौण कड़े कै खा सै
क्यों तेरे घर में घोर गरीबी दिन-दिन बढ़ती जा सै
भाईयां कै खीया चढ रहया तैने दुश्मन कड़े पिछाणा

मील चलावै, नाज उगावै करै सै काम भतेरे
तन पै फेर बी कपड़ा कोन्या, भूखे बाळक तेरे
तूं पीसे-पीसे नै तरसै अरबांपति लुटेरे
कितै चान्दणा दीखै कोन्या चारों अओड़ अंधेरे
क्यों ना सोचै अपणी खातिर, यू सै मेरा उल्हाणा

मुफ्त खोर तेरे पक्के दुश्मन, मेहनतकश तेरे भाई
जो तेरे दुख-सुख के साथी, सोचैं तेरी भलाई
तेरे तैं जो घणे दुखी क्यों उन तैं करे लड़ाई
जात-पात की बात करैं वह सैं निरे कसाई
गांठ मार ले मेरी बात की जै चाह्वै सुख पाणा

जाड्डे कै जाड़ी बाजैं, खेत में जाणा पड़्ज्या
पड़ै कसाई घाम फैर बी ईख नुलाणा पड़ज्या
इतणा कर कै बी माणस नै रूखा खाणा पड़ज्या
न्यों लागै सै आज “कमल” ने भेद बताणा पड़ज्या
तने लूटणीयें घणे छाखटे, तों माणस कोन्या स्याणा