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दंगा / असंगघोष
Kavita Kosh से
आदमी को
काटता है
जब
आदमी
तब
लहू नहीं
हैवानियत बहती है,
जात का नकाब ओढ़े
धर्म अट्टहास करता है
और
इन्सानियत
बेमौत मारी जाती है।