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दउर सुरू हो जाला / अवधेन्द्रदेव नारायण
Kavita Kosh से
सरेख मन से
गते-गते सँसरे में
करेज कसकेला।
बउराइल अकुलाहट
उफनात
जिदिआ के
दउर लगावे में
इचिको ना थथमे।
फरीछ होते
जुड़ाइल
किरिन संगे चुप्पी सधले
सोना नियर दिन में
दउर सुरू हो जाला।
दूरी नापत
गहिर चाल से, धीरज बन्हले
नया बसेरा खोजत
जोत जगावत
दरद पी के
मन मुसक उठेला।
एही जिनगी के
निखरल खुलल दरपन बनेला
तबे नू
सरेख मन से।
गते-गते सँसरे में
करेज कसकेला।