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दब्या करज म्ह अन्नदाता इब किस्त जावै ना पाड़ी / सत्यवीर नाहड़िया

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दब्या करज म्ह अन्नदाता इब किस्त जावै ना पाड़ी
घाटे का यो सौदा होग्या इब खेती अर बाड़ी
 
बखत पुराणा नहीं रह्या इब हाल बदलग्या सारा
टेम गया वो नेम गया वो बदलग्या ईब नजारा
धरती थोड़ी माणस ज्यादा क्यूकर हुवै गुजारा
रही सही जो कतर बची तो मंहगाई नै मार्या
अन्नदाता का बैठ्या ढारा काया हुई उघाड़ी
 
जमींदार की किस्मत माड़ी ना चलै तीर अर तुक्का
कदे लूट ले बाढ़ रै भाई कदे मारज्या सुक्का
उसकी कोई सुणता कोन्या बहोत दे दिया रुक्का
अन्नदाता कहलावै सै पर खुद बैठ्या सै भुक्खा
गंडा सै यो सबनै चुक्खा ना कोई उसका वाड़ी
 
माट्टी के संग माट्टी होज्या जिब हों सै दो दाणे
भात अर छूछक वाणे टेले सारे फरज निभाणे
नाज बेचकै काम हुवै सब टाबर टीकर ब्याहणे
कबै कोठड़ी पडै़ बणाणी बाळक साथ पढ़ाणे
खेतां कै म्हां आज्या ठाणे वै साहूकार अनाड़ी
 
मंहगे होग्ये खाद बीज इब मंहगी खेती क्यारी
खेतां म्हं होटल उग्गैं इब तंगी बढ़ती जारी
कुछ नै बेची धरती अपणी अर कुछ कर्रे सैं त्यारी
पड़ै मुराड़ बीजळी पै किते होर्या पाणी खारी
कह नाहडिय़ा साच्ची सारी रहणे लगे रिवाड़ी