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दरकते देखकर / राजकिशोर सिंह

इंसा को दरकते देऽकर
पफूलों को महकते देऽकर

पेड़ों पर चहकी चिड़ियाँ
किरणों को निकलते देऽकर

क्यों रंग बदलते हो यारो
मौसम को बदलते देऽकर

झीलों की याद आती है
बपर्फ को पिघलते देऽकर

होता है दिल को भरोसा
गिरते को सँभलते देऽकर

अपने हो जाते बेगाने
अश्कों को छलकते देऽकर।