भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दरद रो मोल / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दरद रो मोल,
दरद राक तोल,
करै लो कुण सो जंवरी बोल ?

निजर में कीं रै घणी पिछाणी ?
ताकड़ी कीं री है बेकाण ?
बाट तो भाटां रा बेआंक
गेडियां रळग्या गोळ मटोळ,
दरद रो मोल,
दरद रो तोल,
करै लो कुण सो जंवरी बोल ?

तिंला री काची काया पेल
नेह नै काढ़ै कर असकेल,
पीड़ रो हीरो बीं रै हाथ
मेल दयूं मैं के साव डफोळ ?
दरद रो मोल,
दरद रो तोल,
करै लो कुण सो जंवरी बोल ?

कदेई आसी जै लेवाळ,
मतै ही ले लेसी बो टाळ,
मुलाता फिरै बजारां बीच
आप री मोथा खोळै पोल,
दरद रो मोल,
दरद रो तोल,
करै लो कुण सो जंवरी बोल ?