भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दरमाहा / दीप नारायण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चुल्ही निपेतैक
बरतन मजेतैक
पान चिबबैत हमहुँ
किछु काल बैसबै
बनियाँक दोकान पर

हाट सँ घुरल
पिताक झोड़ा मे रहतनि
नेना-भुटकाक लेल
फोंफी, झील्ली-मुरही, कचरी

खोंखैत छथि
कतेक दिन सँ माय!
आब आनि देबनि दबाइ

आइ सिंगार करती कनियों
दरमाहा आएल अछि!