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दरवाज़े के बाहर भी है / हरि फ़ैज़ाबादी

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दरवाज़े के बाहर भी है
डर तो घर के अन्दर भी है

धीमे-धीमे बोलो ख़तरा
दीवारों के भीतर भी है

अश्क नहीं हल करते हैं कुछ
मैंने देखा रोकर भी है

शायद ही ये माने कोई
ख़ामी मेरे अन्दर भी है

मजबूरी में चुप है वरना
थकता घर का नौकर भी है

ऊपर जाओ पर मत भूलो
कोई तुमसे ऊपर भी है

कोई माने चाहे न माने
कुछ न कुछ तो ईश्वर भी है