दरवाजे - 1 / राजेन्द्र उपाध्याय
दरवाजे रहे हैं हमेशा घर में-राजेन्द्र उपाध्याय
क्या घर नहीं थे
तब भी थे दरवाजे?
मेरे दादा के मकान में नहीं थे दरवाजे
अगर होंगे तो भी वे दिखते नहीं थे
उनका मकान हमेशा सब तरफ़ से खुला था
सूरज और चांद और सितारों के लिए
वहाँ आने के लिए दस्तक देने की ज़रूरत नहीं थी
यहाँ तक कि आवारा कुत्ते और गाएँ भी चली आती थी
और रोटी पाती थी
दुत्कारी नहीं जाती थी।
अब शहर में दुत्कारी जाती हैं औरतें-माएं-पागल औरतें
अब शहर में देखता हूँ हर तरफ़ दरवाजे
उनमें से कई मेरे लिए हमेशा-हमेशा के लिए बंद हैं।
मंत्रालय और मूत्रालय एक साथ दरवाजों में बंद हैं
कोई कोई दरवाज़ा तो खुलते ही बंद हो जाता है।
अपनों के लिए बंद कर लिए जाते हैं दरवाजे
बेटा बुज़ुर्ग बाप को पागल क़रार देता है
मां के लिए भी दरवाजे खोलने से पहले
बेटा अपनी बीबी से पूछने जाता है।
ईश्वर अगर आधी रात को दस्तक देता है
तो भी उससे उसका नाम पूछा जाता है।
रावण सरेआम जूते पहनकर चौके तक चला आता है
और सीता के साथ अट्टहास करता है।