भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दर्द का खेलना आप भी देखिए / सुजीत कुमार 'पप्पू'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दर्द का खेलना आप भी देखिए,
फ़र्द ही झेलना आप भी देखिए।

एक जाता नहीं दूसरा है आता,
दिल बना पालना आप भी देखिए।

बात है ये पते की सुनो तो ज़रा,
वक्त का रूठना आप भी देखिए।

कौन अपना यहाँ कौन है दूसरा,
ये कठिन जानना आप भी देखिए।

दोस्त है ख़ास है नाज़ है आस है,
झूठ ये बोलना आप भी देखिए।

फ़ायदे के लिए लोग मिलते यहाँ,
चेहरा फेरना आप भी देखिए।

ज़िंदगी में कहीं फिर मिलेंगे कभी,
ये मुसाफ़िर चला आप भी देखिए।