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दर्द के खेत में / केशव शरण
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दर्द के खेत में
रचनाकार | केशव शरण |
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प्रकाशक | प्रगीत प्रकाशन, एस०-2/564, सिकरौल, वाराणसी-221 002 |
वर्ष | 2003 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | हिन्दी ग़ज़ल कविताएँ |
विधा | |
पृष्ठ | 132 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- दर्द के खेत में किसानी कर / केशव शरण
- बर्फ़ के घर में धूप की खिड़की / केशव शरण
- रेत में किस तरह उगा हूँ मैं / केशव शरण
- ताप-संताप सह रहा हूँ मैं / केशव शरण
- न करनी चाहिए थी कामना ही / केशव शरण
- मैं कितनी हसरतों से भर गया था / केशव शरण
- इस तरह से वो दिल मिलाते हैं / केशव शरण
- मिले थे हँसते-हँसते साथियों से / केशव शरण
- समन्दर का पानी लहर ही गया है / केशव शरण
- अभी तक ज़मीं का नज़ारा नहीं है / केशव शरण
- किसी की भी दुआ लगती नहीं है / केशव शरण
- कहीं शीशा हो और पत्थर न टूटे / केशव शरण
- इस जहाँ में कहाँ न मेरा दिल / केशव शरण
- तुम रहो आसपास मेरे दिल / केशव शरण
- किस क़दर है उदास शाम / केशव शरण
- हवा के मस्त झोंके आ रहे हैं / केशव शरण
- गर न लाने दे जहाँ हर लाऊँ / केशव शरण
- एक पल भी काटना मुश्किल हुआ / केशव शरण
- पेड़ पर जब फल गदरकर आ गए / केशव शरण
- कर रहा हूँ याद गेसू का मज़ा / केशव शरण
- ज्यों ही रात जाती सबेरे-सबेरे / केशव शरण
- किसी को ये दिल तुम-सा पाता नहीं है / केशव शरण
- ’शरण’ है शीत बरखा घाम जीवन / केशव शरण
- नगर को अब भी रस्ता घूमता है / केशव शरण
- भागना है यहाँ-वहाँ मुझको / केशव शरण
- हमारी ज़िन्दगी क्या हो गई है / केशव शरण
- भले सूरज नदी को पी चुका है / केशव शरण
- कहाँ ठहरी हुई है तू नदी / केशव शरण
- नींद लग रही है क्यों / केशव शरण
- फूलों के आसपास हूँ पत्तियों के दरमियाँ / केशव शरण
- जो खेत दूसरों के हैं दिन-रात काटते / केशव शरण
- अब भी ये भार मेरे ऊपर है / केशव शरण
- जहाँ से प्यार को मैं क्या बताऊँ / केशव शरण
- ढाल बिन तलवार की लड़ रहा हूँ मैं / केशव शरण
- क्या थी खाई क्या चढ़ाई होती / केशव शरण
- कभी सेज है मेरे वास्ते कभी ये एक सलीब है / केशव शरण
- मगर वो मैं हँ मगर वो मैं हूँ / केशव शरण
- अंधेरे के बयाबाँ में अजब तारों का मजमा है / केशव शरण
- ज़िप्सियों का क्या ठिकाना एक है / केशव शरण
- राह महसूस करती है चलती हुई / केशव शरण
- आपसे क्या मेरा दोस्ताना हुआ / केशव शरण
- ऐसा करो की दिल की भी इज़्ज़्त बची रहे / केशव शरण
- सहरा रहे है कब को नदी के ख़याल में / केशव शरण
- मद भरे ये नयन तुम्हारे क्या कहूँ / केशव शरण
- चलो ख़त्म आख़िर अंधेरा हुआ / केशव शरण
- एक परबत तिनके जैसा है / केशव शरण
- बेज़ुबाँ, बेग़रूर हो जाऊंगा / केशव शरण
- अंतःपुर तक बसन्त छाया है / केशव शरण
- शिराओं में सरगर्मियाँ आएंगी / केशव शरण
- ऐसा भी ज़ख़्म और किसी पर करम न हो / केशव शरण
- रिश्ता सबसे रखता हूँ मैं / केशव शरण
- मैंने संसार का मेला देखा / केशव शरण
- फूलों की ख़ुशबू भी ले / केशव शरण
- तेल घी के दिये कुछ नहीं / केशव शरण
- अभी ज़रा मुस्काने में वक़्त लगेगा / केशव शरण
- कभी वो अपना कभी पराया समझा है / केशव शरण
- हर सम्त बनैलापन, हर वक़्त अंधेरा है / केशव शरण
- करें पार कैसे शरारे लिए / केशव शरण
- सियह् आसमाँ हूँ सितारों में हूँ / केशव शरण
- फलों और फूलों और पत्तों के पास / केशव शरण
- मसीहा तो अच्छा है उपचार देख / केशव शरण
- हमेशा का पागल मैं साबित हुआ / केशव शरण
- कहाँ ले आया सबेरा मुझे / केशव शरण
- कभी ज़िन्दगी सम पे आती नहीं / केशव शरण
- सुब्ह रोती है शाम रोती है / केशव शरण
- धीरे-धीरे स्याह होती है / केशव शरण
- गुलसितां में बहार है अब भी / केशव शरण
- चैन किस दिन या रात पाएंगे / केशव शरण
- दो घड़ी भर हैं प्यार की घड़ियाँ / केशव शरण
- मिलन में कितने जनम पड़े हैं / केशव शरण
- ग़जब के शीशे मिले हुए हैं / केशव शरण
- नहीं रहेगा निशान कुछ भी / केशव शरण
- पुराने स्वप्न अब भी हैं अधूरे / केशव शरण
- मैं भी ख़्वाबों में खोना चाहता हूँ / केशव शरण
- कहाँ आख़िर यह रहना चाहता है / केशव शरण
- ज़माने भर से अब उकता गया हूँ / केशव शरण
- कहीं भी प्यार की बरसा करूँ मैं / केशव शरण
- घनी ज़ुल्फ़ों का ग़म सहना पड़ा है / केशव शरण
- निभाना गर उसे आता तो क्या था / केशव शरण
- दिल का नाता बहुत लगाता है / केशव शरण
- तुम्हारा और मेरा मेल सुन्दर / केशव शरण
- मेरी नज़र का क़रार था तू / केशव शरण
- परिन्दे सारे बेघर हो गए हैं / केशव शरण
- पहाड़ों की जहाँ ऊँचाईयाँ हैं / केशव शरण
- मेरे चेहरे पर छाई झाइयाँ थीं / केशव शरण
- इक लहर उठाती है इक लहर गिराती है / केशव शरण
- मेरे प्यार नेक ख़्याल का / केशव शरण
- अमरबेलों के वे कल्ले नए हैं / केशव शरण
- झुराई-सी शाखों पे कलियाँ लगेंगी / केशव शरण
- मैं पाता हूँ धूपों में बाग़ों की ख़ुशियाँ / केशव शरण
- ये नहीं है राजपथ, रास्ता ये आम है / केशव शरण
- मेरा उड़ गया है नशा ही सब / केशव शरण
- इस महाभारत विजय पर अब क्या होना चाहिए / केशव शरण
- मौज-मस्ती किसको कहते और ख़ुशी क्या चीज़ है / केशव शरण
- क्या है क्या है क़िस्मत में जाने वक़्त ही जाने / केशव शरण
- ख़ून अब तो बालटी में आ रहा है / केशव शरण
- चमन से आ मिलीं राहें बसन्ती / केशव शरण
- मौज़े-दरिया बहा करे यूँ ही / केशव शरण
- सौ तरह के पेड़ों से ख़ुशनुमा अहाता था / केशव शरण
- झिड़कियाँ गया देकर, रागिनी में लौटेगा / केशव शरण
- उनके पाँवों के तले हम फ़र्श पर बैठे रहे / केशव शरण
- इक पंख नसीब रह गया है / केशव शरण
- सम्बन्ध बनाने में यहाँ पीछे रहा कौन / केशव शरण
- दामन को भिगोने से नहीं होगा कहीं कुछ / केशव शरण
- दिल न लगता काम में महफ़िलों में मन नहीं / केशव शरण
- वो कहाँ है किधर गया है / केशव शरण
- एक दिन तार-तार बोलेगा / केशव शरण
- क्या मैंने की कोई दवा नहीं / केशव शरण
- फ़सल का रंग धानी कब मिलेगा / केशव शरण
- तू बनाता न ज़िन्दगी को क्यों / केशव शरण
- पानी जो नाली में बहता / केशव शरण
- अगरचे न हो कँपकँपाना बहुत / केशव शरण
- फूल कभी के टूटे हैं / केशव शरण
- ज़रा-सी बात पर नाशाद हैं वे / केशव शरण
- प्यार के बुर्ज़ से किस रोज़ इशारा होगा / केशव शरण
- है मुझे इन्तज़ार आएगी / केशव शरण
- सोम से एतवार तन्हा है / केशव शरण
- मैं नहीं था कम दुखी माहौल से / केशव शरण
- झोली में गीतों का इनआम आए है / केशव शरण
- किनारे पर ज़माना देखता है / केशव शरण
- अभी हूँ रात भर या प्रात भर मैं / केशव शरण