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दर्द को रहने भी दे दिल में दवा हो जाएगी / हकीम अजमल ख़ाँ शैदा

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दर्द को रहने भी दे दिल में दवा हो जाएगी
मौत आएगी तो ऐ हमदम शिफा हो जाएगी

होगी जब नालों की अपने जेर गर्दू बाज-गश्त
मेरे दर्द-ए-दिल की शोहरत जा-ब-जा हो जाएगी

कू-ए-जानाँ में उसे है सज्दा-रिजी का जो शौक
मेरी परेशानी रहीन-ए-नक्श-ए-पा हो जाएगी

काकुल-ए-पेचाँ हटा कर रूख से आओ सामने
पर्दा-दार-ए-हुस्न महफिल में जिया हो जाएगी

जब ये समझूँगा कि मेरी जीस्त है मम्नून-ए-मर्ग
मौत मेरी जिंदगी का आसरा हो जाएगी

इंतिजार-ए-वस्ल करना उम्र भर मुमकिन तो है
गो नहीं मालूम हालत क्या से क्या हो जाएगी

मोहतसिब और हम हैं दोनों मुतफिक इस बाब मै
बरमला जो मय-कशी हो बे- रिया हो जाएगी

फाश राज-ए-दिल नहीं करता मगर ये डर तो है
बे-खुदी में आह लब से आश्ना हो जाएगी

बारयाब-ए-ख्वाब-गाह-ए-नाज होने दो उसे
उन की जुल्फों में परेशाँ खुद सबा हो जाएगी

मक्सद-ए-उल्फत को कर लो पहले ‘शैदा’ दिल-नर्शी
वर्ना हर आह-ओ-फ़ुग़ाँ बे-मुदद्आ हो जाएगी