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दर्द में गर मज़ा नहीं होता / दिनेश त्रिपाठी 'शम्स'

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दर्द में गर मज़ा नहीं होता ,
प्यार दिल में जगा नहीं होता .
उससे मिलने की जुस्तजू क्यों है ,
वो जो मुझसे जुदा नहीं होता .
जाने क्या हो गयी ख़ता मुझसे ,
आजकल वो ख़फा नहीं होता .
जिसने दुनिया के ग़म चुराये हैं ,
उसका कुछ भी बुरा नहीं होता .
उसके चेहरे पे जो लिखा है पढ़ो ,
प्यार का तर्ज़ुमा नहीं होता .
हौसले रास्ता दिखाते हैं ,
जब कहीं रास्ता नहीं होता .