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दर्द होंठों पे बस सजाये हैं / पूजा श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
दर्द होंठों पे बस सजाये हैं
आप कह लीजे मुस्कुराए हैं
करनी होगी परख भरोसे की
आँधियों में दिये जलाए हैं
गर्म तासीर आ गयी रू तक
वो कुछ ऐसे करीब आये हैं
अब कोई फूल शाख पर क्यूँ खिले
पेड़ काँटों के जब लगाए हैं
नाउमीदी की तीरगी में वो
आफताब हो के जगमगाए हैं
वेवजह लोग कोसते हैं उन्हें
ग़म फकत वक़्त के सताए हैं