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दर्पण / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
टूट ग्यो बो
दरपण
हो जकी स्यूं
मरवण री
दीठ रो सगपण
हुगी निढाळ सुहागण
बरसै नैणां स्यूं
सावण
पण
बुहार‘र
लेगी जकी हाळण
बा देख्यो
टूटयोड़ै टुकड़ां में
पैली पोत
निसंक हू‘र
आप रो
रूप‘र जोबन।