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दश्त मेरी ही दुहाई देगा / परवीन फ़ना सय्यद
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दश्त मेरी ही दुहाई देगा
फिर मुझे आबला-पाई देगा
रौशनी रूह तलक आ पहुँची
अब अंधेरे में दिखाई देगा
जर्द पत्तों का धड़कता हुआ दिल
ख़ामुशी में भी सुनाई देगा
तोड़ कर देख तू आईना-ए-दिल
शहर का शहर दिखाई देगा
कश्फ़ ओ आगाही के आईने में
अपना बहरूप दिखाई देगा