भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दही-बड़े हम / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
दही-बड़े हम दही बड़े!
दौड़े आओ, मत शरमाओ
खाओ भाई खड़े-खड़े!
स्वाद मिलेगा कहीं न ऐसा,
चखकर देखो फेंको पैसा।
टाफी-च्यूंगम, आइसक्रीम के
पल में लो झंडे उखड़े।
अजब-अनोखा रंग जमाया,
डंका हमने खूब बजाया।
आ ठेले पर, खड़े हुए हैं,
लाला, बाबू बड़े-बड़े।
अपनी मस्ती, अपनी हस्ती,
खा करके आती है चुस्ती।
तबियत कर दें खूब झकाझक-
अगर कोई इमसे अकड़े।
पेड़ा, बरफी चित्त पड़े हैं,
रसगुल्ले उखड़े-उखड़े हैं।
भला किसी की यह मजाल जो
आकर के हमसे झगड़े।