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दातार धरती / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
तू बीजै एक दाणो
उगै बूंटा
निकळै सिट्टा
जकां मे अणगिणत दाणा
तू बोवै एक गुठली
उगै रूंख
लागै बीं रै अणगिणत फळ
तू रोपै एक पौध
बणै बा झाड़ी
लागै बीं रै अणगिणत फूल
कती दातार है
मावडी धरती
पण तू नूगरो
कोनी मानै उपगार
काटै अंधाधुंद बणराय
कर दियो नदयां रै पाणी ने विष
जे नहीं छोड़ी करणी कुचेरणी
उगलैली धरती आग
हुसी भूकंप
माच ज्यासी हड़कम्प
भोगणो पड़सी तनै
कुबध रो फळ !