भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दादी अर सुपना रौ राजकंवर / सत्येन जोशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दादी
फेर वाहीज कहाणी कै
जिण मांय
सुपनां रौ अेक राजकंवर
परियां री प्रीत रै पांण चालै पाळौ
तीनूं लोकां नै नापलै ऊभौड़ौ
अेक ई ठौड़
अर टाबरां में गिणीजै
सिरै मौड़
दादी म्हैं थारी झीरझीर जिनगाणी री
झुरियां मांय सूं
निकळती देखी है अेक उदबुद चमक
साचमाच रा चांद तारां सूं इक्कीस
पिचकिायोड़ै पेट री ऊंड सूं ऊठियोड़ी आसीस
जकी ही म्हारै फळतै फूलतै
डील रौ गरमास
थारै खोलै मांय सुवांण
जद थूं थेपड़ती म्हनै
तो म्हैं बण जावतौ
सुपनां रौ राजकंवर
अर नापण लागतौ तीनूं लोक
निसंग उउनै आभै मांय
दादी
आज थारी उमर अर पदवी पाय
म्हैं उड़ीकूं पोता पोतियां नै
कै थारै सूंपियोड़ै सुपनां रै राजकंवर रौ
राजमुगट धरूं
तीजी ​पीढी रै माथे ऊपर
पण म्है देखूं
टाबरिया टी.वी. में मगन है
अर म्हारै सांसां री रासां में
जबरी खैंचतांण
आज रौ साच
सुपना हवा में ऊगै
जमीन में कोनी जड़ां
जरूरत कोनी जमीन री आज रै सुपनां नै
दादी
थारै खोळै में सुवांण
अर अंवेर लै थारी कहाणी
देस निकाळौ दिराय दै थारै राजकंवर नै
म्हैं खूंटी में अटकाय राख्यौ है राजमुगट
अर अटकाय राखी है सांसारी डोर
जद लग राजकंवर देसनिकाळै सूं
पाछौ नीं बावड़ै
दादी फेर वाहीज कहाणी कै
जिण रौ कठै ई नीं व्है