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दासी / देखा करो भगवान गरीबों का तमाशा
Kavita Kosh से
रचनाकार: ?? |
देखा करो भगवान ग़रीबों का तमाशा।
दिन रात कोई अश्क बहाए तो तुम्हें क्या।।
ले जितना सताना है सता, बिगड़ी मेरी हर्गिज न बना।
इन रोती हुई आँखों से पानी की जगह ख़ून बहाऊँ तो तुम्हें क्या।।
टूटी हुई नैया है मेरी, बस एक झकोले की देरी।
तूफ़ान चहुँ ओर से आके, मेरी नैया को डुबो दें तो तुम्हें क्या।।
दुनिया तेरी न भायी मुझे, दे-दे किसी की आई मुझे।
इतने बड़े मेले में जो पाँव से, किसी के कोई पिस जाए तो तुम्हें क्या।।