भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दास्तान / रणवीर सिंह दहिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीणा होग्या भारी बेबे,
तबीयत होज्या खारी बेबे,
नहीं सुनाई म्हारी बेबे,
फेर बी जीवण की आस मनै।
1.
ठीक ढालां जीणा चाहया,
रिवाज पुराणा आड्डै आया,
कमाया मनै जमा डटकै,
मेरा बोलना घणा खटकै,
दुख मैं कोण पास फटकै,
यो पूरा सै अहसास मनै॥
2.
मुंह मैं घालण नै होरे ये,
चाहे बूढ़े हों चाहे छोरे ये
डोरे ये डालैं शाम सबेरी,
कहवैं मनै गुस्सैल बछेरी,
मेरी कई बर राही घेरी,
गैल बतावैं ये बदमास मनै॥
3.
सम्भल-सम्भल मैं कदम धरूं,
सही बात पै सही जमा मरूं,
करूं संघर्ष मिल जुल कै,
हंसू बोलूं सबतै खुलकै,
नहीं जीउं घुल-घुल कै,
या बात समझली खास मनै॥
4.
चरित्रहीन का इल्जाम लग्या,
मेरा भीतरला यो और जग्या
सग्या लूटै इज्जत म्हारी,
ओहे बणज्या समाज सुधारी,
कहता फिरै मनै कलिहारी,
रणबीर का विश्वास मनै॥