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दिन आज का यह लगता है / ओसिप मंदेलश्ताम
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दिन आज का यह लगता है
कुछ पीले चेहरे वाला
पर, बन्धु, मैं समझ न पाऊँ
हुआ क्या गड़बड़झाला
वहाँ दूर चमकते झलक रहे
इस तट-प्रदेश के महाद्वार
लँगर जहाजों के छिपे धुँध में
देखें मुझे आँखें फाड़-फाड़
फीके सागर में मृदुगति से तैरे
एक जलयान रखवाला
झलक रहा हिमपर्त के नीचे
रंग काई का काला
9-28 दिसम्बर 1936, वरोनिझ़