भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिन आते हैं / इसाक अश्क

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रोते हैं
जब नयन
अधर मुस्काते हैं
ऐसे दिन
हाँ, ऐसे दिन भी
आते हैं
 
सबके अपने
अलग-अलग हैं
            तौर-तरीके जीने के
जगह-जगह से
फटी उम्र को
            जैसे-तैसे सीने के

बिना पिये
महुआ
ताड़ी मदमाते हैं

इस दुनिया की
चहल-पहल के-
                    रँग-ढँग दस्तूर निराले
उजले वसन
पहन बैठे हैं
          मन से जनम-जनम के काले

करनी से
हर कथनी को
झुठलाते हैं