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दिन आते हैं / इसाक अश्क
Kavita Kosh से
रोते हैं
जब नयन
अधर मुस्काते हैं
ऐसे दिन
हाँ, ऐसे दिन भी
आते हैं
सबके अपने
अलग-अलग हैं
तौर-तरीके जीने के
जगह-जगह से
फटी उम्र को
जैसे-तैसे सीने के
बिना पिये
महुआ
ताड़ी मदमाते हैं
इस दुनिया की
चहल-पहल के-
रँग-ढँग दस्तूर निराले
उजले वसन
पहन बैठे हैं
मन से जनम-जनम के काले
करनी से
हर कथनी को
झुठलाते हैं