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दिन बौने हो गए / उमाकांत मालवीय
Kavita Kosh से
रातें लम्बी हुईं
दिन बौने हो गए ।
ठिगने कद वाले दिन
लम्बी परछाइयाँ
धूप की इकाई पर
तिमिर की दहाइयाँ
रातें पत्तल हुईं
दिन दौने हो गए ।
कुहरों पर लिखी गई
विष भरी कहानियाँ
नीली पड़ने लगी
सुबह की जवानियाँ
रातें आँगन हुईं
दिन कौने हो गए ।
बर्फ़ीले ओठों पर
शब्द ठिठुरने लगे
नाकाफ़ी ओढ़ने
बिछौने जुड़ने लगे
रातें अजगर हुईं
दिन छौने हो गए ।