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दिन सुआपाँखी / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
लगाकर
उड़ रहे पर, वे
पुराने दिन सुआपाँखी
न अम्मा हैं
न गोदी है
न बचपन के सरल साथी
न माचिस है
न तीली है
न घोड़ा है न वह हाथी
अभी भी
पल रहे हैं वे
पुराने दिन सुआपाँखी
अभी भी है
वही खुशबू
हरापन बाग में बाकी
अभी भी
तितलियाँ वैसी
नदी पोखर उड़ीं जातीं
हमारे
साथ अब भी हैं
पुराने दिन सुआपाँखी
उमर भी ढल
रही है बिन
बताये आज चुपके से
मगर हम मौन
हैं साधे
रहे अब बैठ दुबके से
भला कैसे पकड़ रख लें पुराने दिन सुआपाँखी