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दिल के ज़ख़्मों को क्या सीना / देवमणि पांडेय

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दिल के ज़ख़्मों को क्या सीना

दर्द नहीं तो फिर क्या जीना


प्यार नहीं तो बेमानी हैं

काबा , काशी और मदीना।


महलों वालों क्या समझेंगे

क्या मेहनत,क्या धूल पसीना।


मैं तो दरिया पार हुआ

बीच भँवर में रहा सफ़ीना।


दूनी हो गई दिल की क़ीमत

इसे मिला है इश्क़ नगीना।


तुम बिन तनहा है हर लम्हा

रीता-रीता , साल - महीना।