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दिल के दरवाज़े तलक राहेवफ़ा आने दे / नवीन सी. चतुर्वेदी

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दिल के दरवाज़े तलक राहेवफ़ा आने दे
धूल उड़ती है तो उड़ने दे, हवा आने दे

जाने वालों से भला इतनी मुहब्बत क्यूँ कर
शाख़ से कह दो कि वो फूल नया आने दे

वो बहुत जल्द किसी और की हो जायेगी
जिद न कर, उस को सुबूतों को जला आने दे

मौत! वादा है मेरा, साथ चलूँगा तेरे
बस ज़रा उस को कलेज़े से लगा आने दे

ज़ख्म ऐसा है कि उम्मीद नहीं बचने की
जब तलक ज़िन्दा हूँ, नज़रों की शिफ़ा आने दे

दर्द में लुत्फ़ का एहसास न हो तो कहियो
दिल के ज़ख़्मों पे ज़रा रंग हरा आने दे

मैं भी कहता हूँ कि ये उम्र इबादत की है
दिल मगर कहता है कुछ और मज़ा आने दे