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दिल क्या करे जब किसी को / आनंद बख़्शी
Kavita Kosh से
दिल क्या करे जब किसी से किसी को प्यार हो जाए
जाने कहाँ कब किसी को किसी से प्यार हो जाए
ऊँची-ऊँची दीवारों सी इस दुनिया की रस्में
न कुछ तेरे बस में जुलिए, न कुछ मेरे बस में
जैसे पर्वत पे घटा झुकती है
जैसे सागर से लहर उठती है
ऐसे किसी चहरे पे निगाह रुकती है
जैसे पर्वत पे घटा झुकती है
जैसे सागर से लहर उठती है
ऐसे किसी चहरे पे निगाह रुकती है
हो, रोक नहीं सकती नज़रों को, दुनिया भर की रस्में
न कुछ तेरे बस में जुलिए, न कुछ मेरे बस में
दिल क्या करे ...
आ मैं तेरी याद में सब को भुला दूँ
दुनिया को तेरी तसवीर बना दूँ
मेरा बस चले तो दिल चीर के दिखा दूँ
हो, दौड़ रहा है साथ लहू के प्यार तेरे नस-नस में
न कुछ तेरे बस में जुलिए, न कुछ मेरे बस में
दिल क्या करे ...