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दिल में सोयी हुई यादों को जगाया न गया / सिया सचदेव

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दिल में सोयी हुई यादों को जगाया न गया
दश्त में शहर ए तमन्ना को उगाया न उगाया

अपनी महफ़िल से भला खाक़ उठाती तुमको
 बोझ हस्ती का ही जब हमसे उठाया न गया

इतना मजबूत रहा है तेरी यादों का हिसार
ज़श्न ए तन्हाई भी अब हमसे मनाया न गया

कर रहे है वो सभी प्रयावरण पे तक़रीर
पेड़ गमले में कभी जिनसे लगाया न गया

शोर ए मातम था बहोत आपकी बस्ती में ज़नाब
 ऐसे माहौल में हमसे भी तो गाया न गया

दिल के जज़्बात को तहरीर किया है फिर भी
मुझसे आगे मिरी रुसवाई का साया न गया

क़ैद खाने के तरानों से बग़ावत उभरी
ज़ुल्म से फ़िक्र को क़ैदी तो बनाया न गया

मैंने इस दिल में बसा रक्खी हैं तेरी यादे
 दूसरा कोई भी इस शहर में आया न गया