दिल्ली के आसमान की धूल / उमेश चौहान
धूल बहुत है
दिल्ली क आसमान में
पारा भी काफ़ी ऊपर
मौसम वैज्ञानिक बताते हैं
राजस्थान के रेगिस्तानों से आती है यह धूल तथा
सूरज के कर्क रेखा की ओर बढ़ने पर
चढ़ता है दिल्ली का पारा
पर मेरे गाँव का नवबढ़ा नेता
औतरवा कहता है
देश के लाखों गरीबों के
उसके जैसे गरीबों के
पैरों के नीचे से
खिसक रही है जो ज़मीन
वही उड़-उड़ कर छाने लगी है अब
दिल्ली के आसमान में
उन्हीं की उच्छ्वासों की
समेकित उष्मा से ही
चढ़ रहा है दिल्ली का पारा
दिल्ली वाले मानें या न मानें
पर औतरवा मानता है कि
शीघ्र ही फैल जाएगी यह धूल और गर्मी
न्यूयार्क, ब्रुसेल्स और टोकियो तक भी
अगर नहीं रूकता गरीबों के पैरों के नीचे से
ज़मीन का लगातार खिसकना
भले ही कितनी चर्चाएँ हो
जेनेवा, जी-8, व जी-20 के मंचेां पर ।
औतरवा का मानना है कि
उसके जैसों के उठकर चल पड़ने से ही
उड़ रही यह धूल
अब रोज़ दिल्ली वालों की
चमचमाती गाड़ियों पर
एक परत तो जमेगी ही जमेगी
दिन पर दिन मोटी भी होगी
भले ही दिल्ली वाले इसे
कितना भी झाड़ें -पोछें
यह सिलसिला अब
तब तक बंद नहीं होगा
जब तक दिल्ली वाले
देश के लाखों गाँवों
के लोगों के पैरों तले से
ज़मीन का खिसकना बन्द नहीं करा देते ।