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दिव्यज्ञान / अविरल-अविराम / नारायण झा

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आने दिन जकाँ आइयौ
हमरा छत'क आगु चतरलहा
आमक गाछ पर सँ
चों, चें, चुं, चुं करैत
बगड़ा, मेना, फुद्दीक झुंड
आ छोट-छोट चिड़ै सभ
तोड़ि देलक हमर नीन।

हमरा मोने अछि
एक दिन बिस्कुटक बदला
देने रहियैक चूड़ा
तँ ओ सभ घुमि-फिरि
रूसि, गेल रहय भागि
तेँ आने दिनुका जकाँ
बिस्कुटक बुकनी
देलियैक छिड़ियाय
ओ अपन हिस्साक अधिकार बुझि
लुप-लुप लोल सँ
निर्भिक भ$ आइयौ लागल खाय।

तखने
काँउ-काँउ करैत कार कौआ
लुझय लगलै ओकर हिस्सा
कि ई सभ चिड़ै मिलि
टुटि पड़लै एकेबेर
लोलो मे लेलहा
उगिलाय लेलकै
भगा देलाक बादे
लेलकै ई सभ सांस।

हम हरखित भेलहुँ
अपन अधिकारक रक्षा लेल
अपन स्तित्व बचेबा लेल
केना अछि सतर्क
करैए केहेन संघर्ष
कोना हमर मोनक बात
बुझि गेल छल ई सभ पहिने
जे ई त$ हमर सभहक हिस्सा थिक।

मुदा हम एखनहुँ तक
नै बुझि रहल छी अपन अधिकार
आ नै क$ रहल छी
अधिकारक लेल उचित कर्तव्य
लुझबाक आदति
बनेने अछि लाचार
नै जानि
बुझि पायब कहिया?