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दिशा-बोध / महेन्द्र भटनागर

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निरीहों को

हृदय में स्थान दो
सूनापन-अकेलापन मिटेगा !

जिनको ज़रूरत है तुम्हारी —
जाओ वहाँ,
मुसकान दो उनको
अकेलापन बँटेगा !

अनजान प्राणी
जोकि
चुप गुमसुम उदास-हताश बैठे हैं
उन्हें बस, थपथपाओ प्यार से
मनहूस सन्नाटा छँटेगा !

ज़िन्दगी में यदि
अँधेरा-ही अँधेरा है,
न राहें हैं, न डेरा है,
रह-रह गुनगुनाओ
गीत को साथी बनाओ
यह क्षणिक वातावरण ग़म का
हटेगा !
ऊब से बोझिल
अकेलापन कटेगा