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दीप / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
अवशेष स्वयं को कर
दहता जो
जीवन - भर !
दूर-दूर तक
राहों का
हरता अंधियारा,
अन्तर - ज्वाला से
घर - घर
भरता उजियारा :
उसके सर्वोत्तम सक्षम
प्रतिनिधि हम,
तम-हर ज्योतिर्गम !