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दीवार / दुष्यंत कुमार
Kavita Kosh से
दीवार, दरारें पड़ती जाती हैं इसमें
दीवार, दरारें बढ़ती जाती हैं इसमें
तुम कितना प्लास्टर औ’ सीमेंट लगाओगे
कब तक इंजीनियरों की दवा पिलाओगे
गिरने वाला क्षण दो क्षण में गिर जाता है,
दीवार भला कब तक रह पाएगी रक्षित
यह पानी नभ से नहीं धरा से आता है।