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दीवाली के बाद / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
कल तारों की तरह दीये भर गए थे
चारों ओर पृथ्वी में
थोड़ा ऊपर से देखो तो
जैसे असंख्य आग के बिन्दु
धधक रहे हर घर की सीमा पर
आज कुछ भी नहीं
जैसे हवा ने बुझा दिया हो
सब कुछ अपने हाथों से
पड़े हैं सूखे दीये चारों तरफ
आकाश पी चुका है जिनका तेल
बत्तियॉं सूख गयी हैं, कोयले- सी
और खाली जेबों में लोगों के
पैसा दिखाई देता नहीं कहीं ।