भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दु:ख भी मिटें / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

61
सत्ता का कुआँ
कब किसका हुआ
गिरा जो ,डूबा ।
62
थोड़ा-सा सुख
सबको मिल जाए
मन ये खिले।
63
दु:ख भी मिटें
मिटें गिले- शिकवे
स्वर्ग रच दें।
64
साँस आखिरी
सबके भाव बने
प्राण बाँसुरी ।
65
तुम्हारी याद-
रोम-रोम में गूँजे
बनके नाद ।
66
तुम्हारा रूप-
ओस-बूँद पावन,
सर्दी की धूप ।
67
तुम्हारे बैन-
मधुर सामगान
नया विहान।
68
तुम्हारा प्यार-
कल-कल करती
ज्यों जलधार्।
69
तुम्हारा माथ-
छू लिया जो दो पल
लौटें हैं प्राण।
70
तुम्हारा मन-
कण-कण महका
चन्दन-वन ।
71
तुम्हारा हास-
धरा से नभ तक
फैला उजास ।
72
तुम्हारे भाव-
अमृत -सरिता में
तिरती नाव ।
73
तेरा सम्बन्ध-
पावन अनुबंध
न टूटे कभी ।
74
सुख आ जाए
बिटिया जो मुस्काए
माँ का आनन्द ।
75
पोर-पोर से
मेरा आशीर्वचन
हँसे आँगन ।
-0-