भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुःख / एकांत श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दु:ख जब तक हृदय में था
था बर्फ़ की तरह
पिघला तो उमड़ा आँसू बनकर
गिरा तो जल की तरह मिट्टी में
रिस गया भीतर बीज तक
बीज से फूल तक
यह जो फूल खिला है टहनी पर
इसे देखकर क्या तुम कह सकते हो
कि इसके जन्म का कारण
एक दु:ख था?