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दुआ / अर्चना कुमारी
Kavita Kosh से
जब हूक उठती है
तब मलाल उगता है
कि खंजरों की नोंक पर
जिस जिस्म को रखा गया
वही रुह की अलमस्तियों में
आजाद तन्हा फिरता रहा
खेल-खेल में चोट जो लगीं
तो उम्र सारी लग गयी
रेशा-रेशा सांस में चुभन हुई
कि उम्र सारी चुभ गयी
राह एक चलती रही
उम्मीद सी बुनती रही
होंठों पर मुस्कान बन
उम्र भर खिलती रही
उठे जब हाथ
दिल खुदा-खुदा हुआ
नजर झुकी सजदे में
शद भर दुआ-दुआ....