भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुख / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तिरतो तिरतो
सुख में
डूब‘र
फंस ज्यावै
दुख रै कादै में
मन,
छटपटावै
फेर
उठण नै ऊपर
लाग ज्यावै
ईं दुंद में
चाणचक हाथ
आतम रतन
जद पड़ै ठा
दुख
कोनी निरधण !