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दुख / श्याम सुशील
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दुख
जमीन है
एक बीज साजिसमें
कुनमुनाता है
सुख
लहर है दुख
अनंत सागर की
एक मछली-सा जिसमें
डूबता-उतरता है
जीवन
अंधेरे में
प्रकाश की
टोह लेता हुआ
न थकने वाला
हाथ है-
दुख।