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दुख / सीमा सोनी
Kavita Kosh से
कब बदलते हैं दुख...
हर काल
और हर युग में
एक होती है
उनकी भाषा
और रंग-रूप
कब बदलते हैं दुख...
उनके चित्र बदल जाते हैं
बदल जाते हैं उनके मायने
रूठ जाते हैं
सारे सुख उनके सामने...
कब बदलते हैं दुख...
दिन बदल जाते हैं
दुख नहीं बदलते
वे फिर-फिर लौट आते हैं
रूप बदल कर।