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दुखिया के आँसू / ‘हरिऔध’

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बावले से घूमते जी में मिले।
आँख में बेचैन बनते ही रहें।
गिर कपोलों पर पड़े बेहाल से।
बात दुखिया आँसुओं की क्या कहें।1।

हैं व्यथाएँ सैकड़ों इन में भरी।
ये बड़े गम्भीर दुख में हैं सने।
पर इन्हें अवलोक करके दो बता।
हैं कलेजा थामते कितने जने।2।

बालकों के आँसुओं को देख कर।
है उमड़ आता पिता-उर प्रेम मय।
कौन सी इन आँसुओं में है कसर।
जग-जनक भी जो नहीं होता सदय।3।

चन्द-बदनी आँसुओं पर प्यार से।
हैं बहुत से लोग तन मन वारते।
एक ये हैं, लोग जिनके वास्ते।
हैं नहीं दो बूँद ऑंसू ढालते।4।

क्या न कर डाला खुला जादू किया।
आँख के आँसू कढ़े या जब बहे।
किन्तु ये ही कुछ हमें ऐसे मिले।
हाथ ही में विफलता के रहे।5।

पोंछ देने के लिए धीरे इन्हें।
है नहीं उठता दया-मय-कर कहीं।
इन बेचारों पर किसी हम-दर्द की।
प्यार-वाली आँख भी पड़ती नहीं।6।

क्यों उरों से ये दृगों में आ कढ़े।
था भला, जो नाश हो जाते वहीं।
जो किसी का भी इन्हें अवलोक कर।
मन न रोया जी पसीजा तक नहीं।7।

भाग फूटा बे बसी लिपटी रही
बहु दुखों से ही सदा नाता रहा।
फिर अजब क्या, इस अभागे जीव के।
आँसुओं का जो असर जाता रहा।8।

बह पड़ी जो धार दुखिया आँख से।
क्यों न पानी ही उसे कहते रहें।
है नहीं जिसने जगह जी में किया।
हम भला कैसे उसे आँसू कहें।9।

है कलेजे को घुला देता कोई।
मैल चितवन पर कोई लाता नहीं।
कौन दुखिया आँसुओं पर हो सदय।
पूछ ऐसों की नहीं होती कहीं।10।