दुटेङा / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
आपनोॅ बोली, आपनोॅ माय
आपनोॅ देश सब केॅ सोहाय।
सभ्यता-संस्कृति धर्मोॅ में रूढ़ी की भरलोॅ
जानी जा जेन्हैं बाँस फरलोॅ नी मरलोॅ।
जे समय पर जागै छै, वें सब केॅ जगाय छै
जें समय केॅ ठकै छै, ऊ सब दिन ठकाय छै।
आदमी तकदीर लिखॅे पारेॅ जों झोंक हुअेॅ
करेजा में साल हुअेॅ, तनियों नै फोंक हुअेॅ।
खुद पर विश्बास ही भरोसोॅ आरो हिम्मत छेकै
दमचुरुवोॅ आदमी के आसरा खिदमत छेकै।
लवन्ताय झुकै के पर्याय नै होय छै
जेना अहिंसा कायरता के भाय नै होय छै।
तौहें जे देभौ दोसरे वहेॅ घुराय केॅ देथौं
प्यार केॅ प्यार घृणा केॅ घृणा बनाय केॅ देथौं।
आदर करोॅ आदर पैभेॅ निरादर करोॅ निरादर पैभेॅ
ई दस्तूर पुरानोॅ छै दुनियाँ के जे भाव राखभेॅ वहेॅ दर पैभेॅ।
के कहै छै धरती वीरान होतै;
जब नक आदमी तनियों-सा इन्सान होतै?
घृणा के आग बुतैतै पछतावा पानी सें
सीखतै आदमीं खुद आदमी के नादानी सें।
जिन्दगी मिटै नै छै मिटैला सें
सूखतै समुन्दर भी धैला सें?
हर साँझ तोंहें दियरी बारोॅ
दोसरा केॅ नै खुद के ॅ निहारोॅ।
गधेली बेरा में मैलोॅ आकाश
जेना कोय खाढ़ी छै गुमसुम उदास।
दिल नै कचोटेॅ तेॅ पाप मिटतै केना?
सोत प्रेमोॅ के सुखला सें जिनगी सोॅवरतै केना?
दोष केकरोॅ छै, पाप करलकै के
सजा केकरा, इन्साफ करलकै के?
सूखी गेलोॅ छै कंठोॅ में जेकरोॅ मंजिल के तरास
ऊ कुछ भी हुअेॅ जुतगरोॅ आदमी नै होतै।
दोसरा के कूबत केॅ इन्कारै छै वें
जेकरा खुद आपनोॅ कूबत पर भरोसोॅ नै छै।
पथलोॅ पर उगी ऐतियै दूब फूली जैतिये फूल
काश! तोरा अपना कूबत पर भरोसोॅ होतिहौं।
सटबोॅ अच्छा लेकिन याद रक्खोॅ दोस्त
दूरी जरूरी छै पहचान बनाबै लेली।