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दुनिया के ज़ोर प्यार के दिन / ख़ुमार बाराबंकवी
Kavita Kosh से
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दुनिया के ज़ोर प्यार के दिन याद आ गये
दो बाज़ुओ की हार के दिन याद आ गये
गुज़रे वो जिस तरफ से बज़ाए महक उठी
सबको भरी बहार के दिन याद आ गये
ये क्या कि उनके होते हुए भी कभी-कभी
फोर्दोस-ए-इंत्ज़ार के दिन याद आ गये
वादे का उनके आज खयाल आ गया मुझे
शक और ऐतबार के दिन याद आ गये
नादा थे जब्त-ए-गम का बहुत हज़रत-ए-"खुमार"
रो-रो जिए थे जब वो याद आ गये