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दुनिया है चार दिन की सब आकर चले गये / शोभा कुक्कल

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दुनिया है चार दिन की सब आकर चले गये
सब अपना अपना राग सुना कर चले गये

करनी थी तेज़ जिनको मिरी ज़िन्दगी की लौ
वो ज़िन्दगी का दीप जला कर चले गये

कल तक जो साथ आठ रहे साये की तरह
वो आज मुझसे आंख चुरा कर चले गये

आया न ज़िन्दगी में मिरी मौसमे-बहार
गुंचे बहार अपनी दिखा कर चले गये

वो लोग जिनसे आस हमें कुछ खुशी की थी
वो बस्तियां ग़मों की बसा कर चले गये

चेहरा था पुर-जलाल निगाहों में नूर था
हर दिल पे अपना नक़्श जमा कर चले गये

'शोभा' मिरा कलाम किसी ने नहीं सुना
सब अपने अपने शेर सुना कर चले गये।